विकास यात्रा

समाज के विद्वानों के शोध तथा विभिन्न ग्रंथों में किए गए वर्णनानुसार यह निर्विवाद स्वीकृत तथ्य है की खंडेलवाल वैश्य समाज का उद्गम स्थल खंडेला ग्राम, जिला-सीकर, राजस्थान ही है ।श्री खंडेलवाल वैश्य तीर्थ स्थान ट्रस्ट के मैनेजिंग ट्रस्टी पुरुषोत्तम गुप्ता(बूसर) निवासी,जयपुर (मूल निवासी ग्राम बांसखो, तहसील बस्सी, जिला- जयपुर) राजस्थान ने इस स्थान से समाज को जोड़े रखने के लिए एक योजना बना रखी थी योजनानुसार खंडेलवाल वैश्य समाज का तीर्थ स्थान बनाया जाए जिसे अपने एक तीर्थस्थान (धाम)के रूप में समाज बंधु माने एवं उनके मन में यह भावना जागृत हो कि हमारी चारों धाम की यात्रा तभी पूर्ण होगी जब हम खंडेला स्थित हमारे तीर्थ स्थान खंडेलवाल वैश्य धाम,(खंडेला- धाम) के दर्शन कर लें। अपने प्रयासों से खंडेला के राजोरिया परिवार, जोकि खंडेला एवं भारत के विभिन्न प्रांतों में निवास करते हैं, से लगभग 48 बीघा जमीन दान में लेने की स्वीकृति प्राप्त कर ली थी। श्री पुरुषोत्तम गुप्ता (बूसर)अपनी कुलदेवी माता सरसा देवी के मंदिर के निर्माण एवं विकास के सिलसिले में श्री रघुनंदन लाल खंडेलवाल(बडाया), एडवोकेट पुत्र स्वर्गीय श्री जोहरी लाल बडाया,जयपुर से मिले थे।

आपस में बात करने पर खंडेला धाम के बारे में जिक्र हुआ। श्री खंडेलवाल जी ने भी खंडेला में इस तरह का धाम बनाने की योजना से सहमति व्यक्त करते हुए अपनी ओर से पूर्ण सहयोग देने का आश्वासन दिया। समाज के तीर्थ स्थान खंडेलवाल वैश्य धाम (खंडेला धाम) को मूर्त रूप देने के लिए एक ट्रस्ट का गठन किया गया। धाम की देखरेख के लिए 09 मई, 2001 में खंडेलवाल वैश्य तीर्थ स्थान ट्रस्ट का रजिस्ट्रेशन करवाया गया. ट्रस्ट की पहली मीटिंग में सभी के विचार विमर्श से राय बनी कि समाज के उद्गम स्थल के बारे में अधिकांश नई पीढ़ी को कुछ भी मालूम नहीं है, व नई पीढ़ी में समाज के प्रति भावना बनी रहे इसलिए खंडेला में समाज के तीर्थ स्थान खंडेलवाल वैश्य धाम(खंडेला-धाम)का निर्माण प्रारंभ करने का निर्णय लिया गया। वर्तमान में ट्रस्ट के पास 52 बीघा (लगभग 156000 गज )भूमि उपलब्ध है।

खंडेलवाल वैश्य तीर्थ स्थान ट्रस्ट, में ट्रस्टी बनने हेतु सतत प्रक्रिया चलती है एवं कोई भी समाज का बंधू इस में ट्रस्टी बन सकता है:

  • आजीवन संरक्षक ट्रस्टी: रू.11,00,000/-
  • आजीवन ट्रस्टी: रू.1,00,000/-

इसके अलावा विभिन गतिविधियो के तहत सतत विकास में अपना योगदान दे सकता है:

  • अतिथि गृह के कमरा निर्माण: रू.8,00,000/-
  • अतिथि गृह के कमरों का सोंद्रयकरण: प्रति कमरा: रू.3,50,000/-
  • विभिन्न कुलदेवी माता मंदिरों के सोंद्रयकरण होने हैं। अनुमानित लागत रू. 7,50,000/-(प्रति मंदिर)

यह स्थान खंडेलवाल वैश्य समाज को गौरवान्वित करने वाला एवं समाज को संपूर्ण देश एवं विदेश में पहचान दिलाने वाला होगा। इस स्थान से समाज के सभी बंधु हमेशा धार्मिक, आध्यात्मिक एवं भौतिक रूप से जुड़े रहे, यह प्रयास रहेगा। पवित्र सरोवर एवं कदम के वृक्षों के विशाल झुंड से सुशोभित धाम की भूमि पर आने पर ही, उनकी चारों धाम की यात्रा पूर्ण होगी, यह भावना खंडेलवाल वैश्य धाम(खंडेला धाम) के प्रति हमारे समाज के सभी परिवारों में उत्पन्न हो यह प्रयास करना श्री खण्डेलवाल वैश्य तीर्थस्थान ट्रस्ट का उद्देश्य है।

School

SAINT SUNDARDAS VED VIDHYALAY

The Khandelwal Vaishya Tristhsthan Trust for keeping live and revitalize the “Vedic Heritage” has started Saint Sundardas Ved Vidhyalay at Khndela Dham in which Shukla Yajurved Panchvarshiya course (Ved Bhushan) has started since last year. The fifth class students of the age group of 9 to 11 years are admitted in the course.

The Vedas are the source of integral wisdom, science, tradition, and culture of a remarkable civilisation of distilled wisdom of cosmic knowledge survived from the time immemorial. These are not only identified as scripture but also as the fountain head of Indian culture ethos and human civilization. To keep this tradition alive, The Ved school has been started.

“Saint Sundar Das Chaitanya” Gaushala

The Khandela dham also manages “Saint Sundar Das Chaitanya” Gaushala which has been developed in a lush green environment surrounded by large trees and currently houses over 50 cows. The purpose of the Gaushala is to protect and look after our cows.

Our Vedas say that Mātaraha sarvabhūtanām gāvaha, the cow is the mother of mothers since it has the ability to feed, provide and support humanity in many ways.

“GĀVO VISHVASYA MĀTARAHA, meaning, the cow is the mother of the universe. Cows nourish and look after everyone, regardless of religion, society, caste or creed”.

Gaushala

The cow remains the basis of development and nurture in all stages of life through its milk as food, manure for agriculture.

The gau mutra (cow urine) and gau mai (cow dung) have medicinal uses in Ayurveda and used for purification in sacred rituals. Gaushala is dwelling place of cows: a temple of God whereby there are no rules or restrictions, and God welcomes his devotees with utmost attention.

Aarati

Aarati

Aarati is one of the most important parts of worshipping God in a temple. It is our tradition to perform Aarati of those who are very dear to us because we wish the best for those we love. We are happy when they are, and want to take on their grief and that they remain happy.

Hence, by carrying out Aarati, we express our unity with them. This is why we encircle the Aarati lamp and then take our hands over our head, as if to signify that we are willing to take on their grief. The gathering of the light in cupped hands and transferring that to the forehead and crown of the head is also symbolically asking for the light to gift divine vision and for those thoughts to be moral and beautiful.

At the conclusion of the Aarati, we recite the Mantra Pushpānjali, prayer with an offering of flowers, in which we say a prayer for the happiness and prosperity of our loved ones.

Aarati Times

Mangalā (Morning) Aarati: 7:30am

Rājbhoga (Royal Offerings) Aarati: 11am

Sandhyā (Evening) Aarati: 7pm

ट्रस्ट के लिए दान

1. आजीवन संरक्षक ट्रस्टी: रू.11,00,000/-

2. आजीवन ट्रस्टी: रू.1,00,000/-

3. अतिथि गृह के कमरा निर्माण: रू.8,00,000/-

4. अतिथि गृह के कमरों का सौंदर्यीकरण प्रति कमरा रू.3,50,000/-

5. निम्र कुलदेवी माता मंदिरों के सौंदर्यीकरण होने हैं। अनुमानित लागत रू. 7,50,000/- (प्रति मंदिर)

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