खंडेला को खंडेलवाल बनियों की उत्पत्ति से जोड़ा जाता है। इन की पौराणिक उत्पत्ति का वर्णन 17वीं शताब्दी के एक पाठ, "श्रावकोत्पत्ति वर्णनम" में दिया गया है।
खंडेला नाम मान्यता है कि यह खंडेल नामक ऋषि से उत्पन्न हुआ है। उनके 72 बेटों से 72 खंडेलवाल गोत्र उत्पन्न हुए। उन गोत्रों में से कुछ हैं - अटोलिया, तासिद, अकार, अमेरिया, माली, राजोरिया, हल्दिया, रावत, बूशर, पिठलिया, वैद, ठेकुरा और बुखमरिया।
खंडेला को उसकी अद्वितीय प्राकृतिक सौंदर्य के लिए प्रसिद्ध माना जाता है और उसकी पवित्र धरोहर के लिए सम्मानित किया जाता है, जिसका विशाल इतिहास हजारों वर्षों से आध्यात्मिक अभ्यास का है। यहां के वायुमंडल में एक दुर्लभ, अमर शुद्धता, दैवीता पाई जाती है एवं ऋषियों और संतों ने यहाँ कई युगों के दौरान सांत्वना, शांति और प्रेरणा पाई है।
सीकर जिले का खंडेला कस्बा ऐतिहासिक और धार्मिक स्थल होने के साथ-साथ खंडेलवाल वैश्य समाज का उद्गम स्थल भी है. आज खंडेलवाल वैश्य समाज सम्पूर्ण भारत में फैला हुआ है।
खंडेलवाल वैश्य समाज ने अपने उद्भव स्थल खंडेला को तीर्थ स्थल के रूप में माना है व समाज के लोगों को अपने उद्गम स्थल से जोड़े रखने के लिए पलसाना रोड खंडेलवाल वैश्य धाम (खंडेला धाम) का निर्माण कराया है।
यह स्थान खंडेला से पाँच किलोमीटर दूर पलसाना रोड पर स्थित है. जयपुर से यहाँ की दूरी लगभग 97 किलोमीटर है। जयपुर से यहाँ आने के दो रास्ते हैं. एक रास्ता रींगस से श्रीमाधोपुर होकर तथा दूसरा रास्ता रींगस से पलसाना होकर आता है।
इस स्थान को खंडेलवाल वैश्य समाज के एक तीर्थ स्थल के रूप में विकसित कर समाज के सभी लोगों को इस स्थान के दर्शनों के लिए प्रेरित किया जा रहा है. ऐसा माना जाता है कि इस स्थान के दर्शनों के बिना चारों धामों की यात्रा का फल नहीं मिलता है।
खंडेला धाम लगभग 52 बीघा भूमि पर फैला हुआ है. इसके मुख्य द्वार के सामने लगे कदम्ब के वृक्षों का झुण्ड इस स्थान को अत्यंत मनमोहक बना देता है।
1. आजीवन संरक्षक ट्रस्टी: रू.11,00,000/-
2. आजीवन ट्रस्टी: रू.1,00,000/-
3. अतिथि गृह के कमरा निर्माण: रू.8,00,000/-
4. अतिथि गृह के कमरों का सौंदर्यीकरण प्रति कमरा रू.3,50,000/-
5. निम्र कुलदेवी माता मंदिरों के सौंदर्यीकरण होने हैं। अनुमानित लागत रू. 7,50,000/- (प्रति मंदिर)